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एदं म॒रुतो॑ अ॒श्विना॑ मि॒त्रः सी॑दन्तु॒ वरु॑णः। दे॒वासः॒ सर्व॑या वि॒शा ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

edam maruto aśvinā mitraḥ sīdantu varuṇaḥ | devāsaḥ sarvayā viśā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒। इ॒दम्। म॒रुतः॑। अ॒श्विना॑। मि॒त्रः। सी॒द॒न्तु॒। वरु॑णः। दे॒वासः॑। सर्व॑या। वि॒शा ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:26» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) मनुष्य (मित्रः) मित्र (वरुण) सब में उत्तम (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक तथा (देवासः) विद्वान् जन (सर्वया) सम्पूर्ण (विशा) प्रजा से (इदम्) इस आसन पर (आ, सीदन्तु) विराजें ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजा और श्रेष्ठ जन न्यायासन पर विराज के अन्याय और पक्षपात का त्याग और न्याय करके प्रजाओं के प्रिय होवें ॥९॥ इस सूक्त में अग्नि और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह छब्बीसवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

मरुतो मित्रो वरुणोऽश्विना देवासः सर्वया विशेदमा सीदन्तु ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (इदम्) आसनम् (मरुतः) मनुष्याः (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (मित्रः) सखा (सीदन्तु) आसताम् (वरुणः) सर्वोत्तमः (देवासः) विद्वांसः (सर्वया) (विशा) प्रजया ॥९॥
भावार्थभाषाः - राजा सभ्या जनाश्च न्यायासनमधिष्ठायान्यायं पक्षपातं विहाय न्यायं कृत्वा प्रजानां प्रिया भवन्त्विति ॥९॥ अत्राग्निविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षड्विंशतितमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व श्रेष्ठ जनांनी न्यायासनावर बसून भेदभाव व अन्याय न करता न्याय करून प्रजेमध्ये प्रिय व्हावे. ॥ ९ ॥